Sunday 7 January 2018

Music Love - Kya yahi pyar hai ??

*कुछ शब्द संगीत रसिकों के लिए ...*
-- By *Dr. Hitesh Karia*
( BE, MBA , LL.B., CCA, P.D.M.....)

" *क्या यही प्यार है?*"

दिल तेरे बिन कहीं लगता नहीं , वक़्त गुज़रता नही...

यह लेख हिन्दीमे इसलिए लिख रहा हूँ कि ज्यादातर लोग पढ़ सके और अच्छे से समझ भी सकें ।
यह किसीको नज़र में रखकर नहीँ लिख रहा हूँ मगर हँसी आती है जब कोई बोलता है कि *हम गीत संगीत के रसिक है* और कभी गीत संगीत को दयान से सुनने का भी समय न हों , प्रोग्राम में मौजूदगी तो बहुत दूर की बात है। फिर भी केवल दिखावे के लिए... *संगीत रसिक* का लेबल चाहिए !!!
अफसोस , मगर सच और बिल्कुल सच है । क्या अपने शौक पालने का इतना भी समय नही ? और *जिसे पालने का समय ना हों वह शौक तो हो ही नहीँ सकता ।*
क्या आपने आज का *Little Wonder Orchestra* देखा ?  नहीं , खैर कुछ मज़बूरी होगी । क्या पिछले महीने का *अशोका ग्रुप*का बच्चों का *Live Orchestra*  का प्रोग्राम देखा ? आनंदजी भाई से मिलें ?  नहिं??  खैर ... श्री रवि जोशी सर के शिष्यों द्वारा *बांसुरी वादन* (वेणुवादन)का कार्यक्रम ? Ok ok ...
रागिणीजी की छोटी छोटी शिष्याओं द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम?

*समझा ...*

*कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी , वर्ना , यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता ।*
अगर आप संगीत के शौकीन हैं , तो कहीं न कहीं से यह सुना ही होगा कि यह प्रयोग कोई *इंटरनेशनल प्रोग्राम* से कम नहीं थे । ऐसे कई प्रयोग हुए , सब का नाम यहाँ ले नही सकता !!
मगर क्या आपने यह सोचा कि , इन प्रोग्राम के पीछे अविनाश गांगुरड़े सर , रागिणी जी , रवि जोशी सर इनका कितना बड़ा योगदान होगा ? कितना त्याग होगा ?? क्या जरूरत थी *अशोका ग्रुप* को इतने बड़े आर्टिस्ट अपने स्कूल में प्रशिक्षित करने की ??? सोचा ??
आइए , *आप इतने व्यस्त है ?* तो बेशक आपके पास *नासिक म्यूजिक क्लब* के प्रोग्राम भी देखने का समय नहीं होगा , हम समझ सकते है  ।
क्या आपको लगता हैं कि हज़ारों करोड़ के प्रोजेक्ट चालू है ऐसे अशोका ग्रुप के चैयरमैन श्री अशोक कटारिया जी  के पास समय है ??!!! विश्वास ग्रुप के श्री विश्वास ठाकुर सर , दगड़ू तेली ग्रुप के जयंत जी चांदवडकर , कारडा गृपके श्री मनोहर भाई , जय डेवलोपर्स के वासुदेव लालवानी जी , DJ builders के हंसवानी जी , मिर्ची होटल के भास्कर जी पाटिल इत्यदि...!!! कितने नाम लें ??? हर कोई अपनी जिम्मेदारी निभाकर संगीत की सेवा सच्चे दिल से करते हैं । *जिन्हें पाने का होंसला हो उन्हें मंज़िल मिल ही जाती हैं ।* क्या आपने अशोका ग्रुप के संगीत क्लास में जाकर देखा ? अपने ग्रूप में इतने संगीत के विशारद है उनमे से एक से भी मिले ? उनके क्लास में जाकर देखा ? सबसे ज्यादा मेहनत प्राथमिक पाठशाला के शिक्षकोंको लगती है जो एक अनजान बच्चे को ABCD सिखाते हैं । उसके आगेकी शिक्षा तो उसी पर आधारित हैं ।पर प्राथमिकी शिक्षा का सबसे ज्यादा महत्व है। इसी तरह हमारे गुरुवर्य लोग छोटे बच्चोँ को किस तरह संगीत की प्राथमिक शिक्षा देतें है !! जरूर देखें । याद रहें यह संगीत साधना शारदा सरस्वती की आराधना है । और सरस्वती में लक्ष्मी से कम ताकत नहीं है , *कैलाश खैर* जैसे अंधेरी स्टेशन के प्लेटफार्म पर सड़क के गायक को आज उसकी संगीत साधना ने कहाँ पहुँचा दिया !! और हाँ , मैंने जिन प्रोग्रामके बारेमें लिखा वह करीब करीब  सारे ही निःशुल्क थे । किसी ने बड़ी बात लिखी हैं ।
*LIVE THE LIFE BEFORE IT LEAVES YOU*
इंसान को अपने अंतसमय में पछताना पड़ता हैं कि उसने जिन संसारिक सुखोंको अपना अनमोल समय दिया वह सब यहीं रह जाता हैं और वह जो करना चाहता था वह तो वो कर ही नहीँ पाया !! अपने शौक को जरूर पालें । *जीवन जिया करें केवल गुजारें नहीं !!*
आपका खुद गायक , संगीतकार, आर्टिस्ट होना जरूरी नहीं । केवल आपकी रुचि ही काफी है । कितने संगीतप्रेमी अपना घर , हॉल , जगह आदि संगीत के लिए मुफ्त में देतें हैं । कोई पूरा प्रोग्राम भी स्पॉन्सर करते है तो कोई प्राइजेस लाकर देता हैं । कोई अपने घर के प्रोग्राम में हमें बुलाकर प्लेटफॉर्म देता हैं । हर कोइ अपने अपने तरीके से सेवा और साधना करते हैं। केवल बच्चों की ही बात नहीं , उन औरतों की भावनाओं को भी समझिए जो शादीके बंधनों में अपने सारे शौक भूल गईं । अब बच्चे बड़े हुए तब समय मिल रहा है पर गानेका शौक कहाँ पूरा करें ? 60 की उम्र तक नौकरी करके , अब रिटायर हुए चाचा चाची कहाँ गीत गाने और सुनने जाएंगे ?? आइये इन्हें जानें , इन्हें समझें !!! गौतम बुद्ध भगवान ने जब अपने शिष्यों को सुख की परिभाषा जानने भेजा तब उनके शिष्यों ने जाना कि सुखी तो वह थे जो खुशियाँ बाँट रहे थे न कि वह जो खुशियों को लूट रहें थे ।
*खुशी और ज्ञान दो ही ऐसी चीज़ें हैं जो बाँटने से बढ़ती है ।*
बच्चों का अंतर्मंन (subconscious mind ) 7 की उम्र में आकार लेने लगता हैं , तब तक उसको जो भी शिक्षा दी जाएँ वह उसके लिए पत्थर की लकीर के बराबर होती हैं मगर 7 साल की उम्र के बाद क्यूं , कब ?? ऐसे सवाल मनमें उठने लगते है । बच्चों को 5-6 की उम्र से ही संगीत साधना में लगाएं और एक सच्चे गुरु के हवाले करें । एक वाद्य बजाना और गाना तो आजकल के बच्चों को आना ही चाहिए । जिस प्रकार दुनिया में STRESS लेवल बढ़ रहा है , संगीत की साधना ही उसे कम कर सकती है । अगर बच्चों को यह अभीसे नही दिया तो वह जीवनभर आपको दोष देगा ।आजकल एक डिग्री का भी वैल्यू नहीं है , 2 से 3 तो चाहिए ही चाहिए इसी तरह जीवनमें खूबियाँ एक नहीं अनेक होनी चाहिए । सरस्वती का साधक विद्वान कहलाता है और चाणक्य का विधान है
*नृपत्वम एवं विद्वतं न तुल्यते कदाचन*
*स्वराज्ये पूज्यति राजा , विद्वान सर्वत्र पूज्यते*
इसका अर्थ आप हमारे ग्रुप के किसी भी गुरुवर्य से ही समझ लेना ।
जिंदगी को समझते समझने में ही खत्म हो जाती हैं । *आइए सच्चे मनसे नासिक म्यूजिक क्लब* से जुडें , खुशियों को बांटे , लोगोंकी भावनाओं को समझें , कार्यक्रम का आनंद लें , सिखनेवालों का हौंसला बढ़ाएँ , संगीत की सेवा में अपना हाथ बटाएँ । और अगर नहीं ...
*तो हम तो पूछेंगे ही*....

*क्या यही प्यार है*  ???

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