Tuesday 17 April 2018

अक्षय तृतीया महत्व , विधान और कथा

देशभर में इस साल अक्षय तृतीया का पर्व बुधवार, 18 अप्रैल को मनाया जा रहा है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक यह त्योहार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया यानि तीसरे दिन मनाया मनाया जाता है। इस पर्व को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व को बहुत शुभ माना जाता है। माना जाता है इस दिन से सतयुग की शुरुआत हुई थी। वेदव्यास और भगवान गणेश ने आज ही के दिन महाभारत को लिखना शुरू किया था। इस दिन दान का विशेष महत्व होता है। इस दिन ब्राह्मणों को दान करना बहुत फलदायी माना जाता है। इस दिन घर के सामान की खरीदारी करना अच्छा माना जाता है। इस दिन सोना खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। अक्षय का मतलब सनातन और तृतीया का मतलब तीसरा होता है। इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण को जौ, सत्तू, ककडी और चने की दाल अर्पित की जाती है। इस दिन गरीबों को शरबत, ठंडा दूध, चप्पल और छाता दान करना उत्तम माना जाता है।

क्यों मनाते हैं अक्षय तृतीया – यह पर्व हिंदू और जैन धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। जैन धर्म के लोग मानते हैं इस दिन भगवान परशुराम का जन्मदिन हुआ था इसलिए वह इसे परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं। वहीं हिंदू शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया पर्व के दिन स्नान, होम, जप, दान आदि का अनंत फल मिलता है, इसलिए हिंदू संस्कृति में इसका खास महत्व है। वहीं परशुराम के अवतार के अलावा यह भी माना जाता है कि अक्षय तृतीया के दिन ही पीतांबरा, नर-नारायण और हयग्रीव ने भी अवतार लिया था।


माना जाता है इस दिन सोना खरीदने से घर में सुख-समृद्धि आती है। भारतीय काल गणना के सि‍द्धांत के अनुसान अक्षय तृतीया के दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई थी और इसी वजह से इस तिथि को सर्वसिद्ध तिथि माना जाता है। इसी लिए परंपरासोना खरीदा जाता है। 
अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति काफी श्रद्धा थी। इस व्रत के महात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने के बावजूद भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना।कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने के बावजूद भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुआ।


स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाखशुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों में इस तिथि को परशुराम जयंती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। दक्षिण भारत में परशुराम जयंती को विशेष महत्व दिया जाता है। परशुराम जयंती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के बाद प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद बदल कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने के बाद भी विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाए। उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक फरसा रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा।

मेरी तरफसे आप सबको बहुत बहुत शुभकामनाएं । भगवान आपके सुखोंको , समृद्धि को अक्षय रखें और आपके दुःख दारिद्र्य का क्षय हो । 

Hitesh Karia

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Wednesday 11 April 2018

माता पिता का सन्मान कैसे करें

*अपने माता पिता का सम्मान करने के 35 तरीके*
1. उनकी उपस्थिति में अपने फोन को दूर रखो.
2. वे क्या कह रहे हैं इस पर ध्यान दो.
3. उनकी राय स्वीकारें.
4. उनकी बातचीत में सम्मिलित हों.
5. उन्हें सम्मान के साथ देखें.
6. हमेशा उनकी प्रशंसा करें.
7. उनको अच्छा समाचार जरूर बताएँ.
8. उनके साथ बुरा समाचार साझा करने से बचें.
9. उनके दोस्तों और प्रियजनों से अच्छी तरह से बोलें.
10. उनके द्वारा किये गए अच्छे काम सदैव याद रखें.
11. वे यदि एक ही कहानी दोहरायें तो भी ऐसे सुनें जैसे पहली बार सुन रहे हो.
12. अतीत की दर्दनाक यादों को मत दोहरायें.
13. उनकी उपस्थिति में कानाफ़ूसी न करें.
14. उनके साथ तमीज़ से बैठें.
15. उनके विचारों को न तो घटिया बताये न ही उनकी आलोचना करें.
16. उनकी बात काटने से बचें.
17. उनकी उम्र का सम्मान करें.
18. उनके आसपास उनके पोते/पोतियों को अनुशासित करने अथवा मारने से बचें.
19. उनकी सलाह और निर्देश स्वीकारें.
20. उनका नेतृत्व स्वीकार करें.
21. उनके साथ ऊँची आवाज़ में बात न करें.
22. उनके आगे अथवा सामने से न चलें.
23. उनसे पहले खाने से बचें.
24. उन्हें घूरें नहीं.
25. उन्हें तब भी गौरवान्वित प्रतीत करायें जब कि वे अपने को इसके लायक न समझें.
26. उनके सामने अपने पैर करके या उनकी ओर अपनी पीठ कर के बैठने से बचें.
27. न तो उनकी बुराई करें और न ही किसी अन्य द्वारा की गई उनकी बुराई का वर्णन करें.
28. उन्हें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल करें.
29. उनकी उपस्थिति में ऊबने या अपनी थकान का प्रदर्शन न करें.
30. उनकी गलतियों अथवा अनभिज्ञता पर हँसने से बचें.
31. कहने से पहले उनके काम करें.
32. नियमित रूप से उनके पास जायें.
33. उनके साथ वार्तालाप में अपने शब्दों को ध्यान से चुनें.
34. उन्हें उसी सम्बोधन से सम्मानित करें जो वे पसन्द करते हैं.
35. अपने किसी भी विषय की अपेक्षा उन्हें प्राथमिकता दें...!!!

*माता – पिता इस दुनिया में सबसे बड़ा खज़ाना हैं..!!* यह मेसेज हर घर तक पहुंचने मे मदद करे तो बड़ी कृपा होगी मानव जाति का उद्धार संभव हैं, यदि ऊपर लिखी बातों को जीवन में उतार लिया तो। *सबसे पहले भगवान, गुरु माता पिता ही हैं,* हर धर्म में इस बात का उल्लेख हे...!!!

सभी के माता पिता को सत् सत् नमन...!!!🙏🙏

Sunday 8 April 2018

प्राचीन ज्ञान , विज्ञान आणि मंदिर रचनां

आपले वेद आणि प्राचीन ज्ञान संपूर्ण थोतांड आहे का ? आणि आधुनिक विज्ञान परिपूर्ण आहे का ? ( एक अभ्यासपूर्ण विवेचन )

सदरील लेखात आपण विज्ञान आणि वैज्ञानिक आणि त्यांचे शास्त्रीय दृष्टीकोन याचा उहापोह केला आहे. ठीक आहे. विज्ञानात वैज्ञानिक निसर्ग नियमाना जाणून घेण्यासाठी प्रश्न विचारतो, उत्तरे शोधतो. तर्कावर आधारित सिद्धांत मांडतो. ते गणितीय पद्धत वापरून सिद्ध करतो हि सगळी तार्किक दृष्टी आहे. आपला हा सुद्धा दावा आहे कि मानवाने ३०० वर्षात अफाट प्रगती केलेली आहे.

सूर्य-चंद्र ग्रहणे, कोणत्या दिवशी, नेमक्या कोणत्या वेळी, जगात कुठे, कशी दिसतील याची अचूक गणिते या सिद्धांताच्या आधारे आपण गेली तीनशे वर्षे करीत आहोत. असा आपला दावा आहे

ज्या माणसाला वेद म्हणजे काय आहे हे माहित नाही. ज्या माणसाला उपनिषदे म्हणजे काय हे माहित नाही. ज्या माणसाला प्राचीन भारतीय गणिती पद्धत म्हणजे काय हे माहित नाही. ज्या माणसाला प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र, अंतराळशास्त्र काय हे माहित नाही त्या माणसाला हा लेख वाचून विज्ञानाबद्दल प्रेमाचे भरते येणे स्वाभाविक आहे. परंतु हे सगळे अर्ध सत्य आहे. मध्यंतरी एका विद्वानाने अशीच टिप्पणी केली होती सगळे काही वेदात असेल तर तुम्ही पुढचे १० -१५ शोध आजच लावा कि, विज्ञान हे शोध लावण्याची वाट का पहात बसला आहात.

तर विज्ञान विरुद्ध प्राचीन भारतीय ज्ञान / अध्यात्म या विषयावर आपण मुद्देसूद, पुराव्यांच्या सह चर्चा करूया. विज्ञानाचे जे प्रेमी असतील त्यांनी आवर्जून हा लेख वाचावा माझ्या मुद्द्यांच्या बद्दल काही आक्षेप असतील ते नोंदवावे. आणि जर माझे मुद्दे योग्य असतील तर मान्य करण्याचा मोठेपणा सुद्धा दाखवावा.

१) https://www.speakingtree.in/allslides/mystery-behind-the-iron-pillar-of-qutab-minar/288949
या पेज ला भेट द्या. कुतुब मिनार च्या समोर एक लोहस्तंभ आहे. २२ फुट उंच सुमारे ६.५ टन वजन असणारा wrought iron अर्थात ओतीव लोखंडाचा बनलेला स्तंभ. ज्याचे वय कमीत कमी १६०० वर्षे आहे. ज्याच्यावर एक अत्यंत पातळ असे आवरण चढवले आहे ज्यामुळे गेली १६०० वर्षे या खांबाला गंज लागलेला नाही. आय आय टी कानपूर च्या धातू तज्ञांनी अभ्यास करून एका विशिष्ट रासायनिक प्रक्रियेचा उल्लेख केला आहे ज्याचे आवरण फक्त १० micron आहे त्यामुळे हा स्तंभ अजूनही गंज पकडत नाही.

आपल्या महान वैज्ञानिक प्रगती चे मापदंड असणाऱ्या कोट्यावधी रुपयांच्या कारला सुद्धा मुंबईच्या खाऱ्या वातावरणात ३ ते ५ वर्षात बुडाला भरपूर गंज लागतो आणि मुंबईतील जुनी कार नेहमीच निम्म्या किमतीला विकली जाते. १६०० वर्षांच्या पूर्वी जिवंत असणारी अंधश्रद्धाळू विज्ञान परान्मुख माणसे जे करून गेली आहेत त्याची नक्कल तरी करण्याची आजच्या वैज्ञानिकाची आणि त्यांच्या समर्थकांची तयारी आहे का ??

२) https://www.quora.com/What-is-so-unique-about-the-Lepakshi-temple-Andhra-Pradesh

लेपाक्षी मंदिर आंध्र प्रदेश. या मंदिरात एक दगडाचा स्तंभ ( column ) आहे तो अधांतरी आहे. त्या खांबाच्या खालून आपण एक इंच जाडीची कोणतीही वस्तू फिरवून त्याची खात्री करून घेऊ शकतो. याच पद्धतीचा दीपस्तंभ मी विजयनगर साम्राज्यात सुद्धा पहिला होता. एक मेकानिकल इंजिनियर म्हणून मी तो कसा बनवला असेल हे नक्की सांगू शकतो. सुमारे १० टन वजन असणारा एक २ फुट व्यास असणारा दगड घ्या. त्याच्यावर तुम्हाला हवे तसे नक्षीकाम करा ( सुमारे ५ ते १० वर्षे लागणार हे करायला पारंपारिक हत्यारे वापरून. ) नंतर त्या खांबाच्या एका बाजूला एक मोठे गोल भोक करा त्यात लोहकांत दगड ( चुंबकीय गुणधर्म असणारा दगड ) घट्ट ठोकून बसवा. नंतर जिथे हा स्तंभ उभा करायचा असेल तिथे जमिनीत या दगडाचे वारा, पाउस, उन, वादळ या सगळ्या प्रकारात सुद्धा रक्षण करू शकेल इतका मजबूत पायाचा दगड बसवा त्यात तितकाच मजबूत पायाचा लोहकांत दगड ठोकून बसवा. आता या दोन्ही लोह्कांत दगडांचा असा संयोग हवा कि त्यांनी परस्परांना दूर तर लोटले पाहिजे पण ते स्थिर सुद्धा राहिले पाहिजेत ( १० टन वजनाचा दगड घेऊन आजच्या कोणत्याही वैज्ञानिकाने हे करून दाखवावे ) मग खालील दगडावर हा वरील दगड ढकलत ढकलत आणा दोन्ही दगड एकमेकांच्या चुंबकीय क्षेत्रात आले कि ते स्थिर होतील. आणि नंतर १००० वर्ष तसेच राहतील.. ( अजून किती काळ राहतील ते माहित नाही ) असा अफलातून तंत्रज्ञानाचा वापर करणारी मंडळी निर्बुद्ध होती ? त्यांना विज्ञान तुमच्या न्यूटन पेक्षा कमी समजत होते असे तुमचे मत आहे का ? बर हे करणारी मंडळी कलाकार होती, शिल्पी होती, तुमच्या पुरोगामी भाषेत बहुजन.. ब्राह्मण सुद्धा नव्हती तरी त्यांचे गणित, विज्ञान आणि निसर्गाचा अभ्यास इतका पक्का होता कि ती मंडळी या गोष्टी लीलया करत होती.

३) महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापूर किरणोत्सव : आदिमाया महालक्ष्मीचे हे मंदिर कमीत कमी १००० वर्ष जुने आहे. या मंदिरात भूगोलाचा अभ्यास करून मुख्य द्वार असे बनवले आहे कि दर वर्षी विशिष्ट नक्षत्र असताना सूर्याचे पहिले किरण हे देवीच्या पायावर पडते आणि जसा सूर्य वर वर जातो ती किरणे तिच्या मुखापर्यंत पोचतात. हा सोहळा किरणोत्सव म्हणून ओळखला जातो. ज्या लोकांनी हे मंदिर बांधले त्यांचा भूगोल अत्यंत पक्का असल्या शिवाय आणि त्यांचे गणितीय ज्ञान अत्यंत चपखल असल्याशिवाय हे शक्य होऊ शकेल ? आज असेच एक मंदिर उभे करायचे ठरले तुमचे शास्त्रज्ञ सध्या ज्ञात असणारी साधने आणि तंत्रज्ञान घेऊन सुद्धा १००० वर्ष टिकेल अशी वस्तू निर्माण करू शकतील ? आणि याच पद्धतीचा किरणोत्सव तुमच्या न्यूटन च्या मूर्तीवर पाडून दाखवू शकतील ???

४) कैलाश मंदिर वेरूळ : वेरूळ येथील लेणीनच्या मध्ये असणारे कैलास मंदिर हे जगातील पहिले आधी कळस मग पाया या पद्धतीने बांधलेले मंदिर आहे. ७व्या शतकात बांधलेले हे मंदिर एकाच शीलाखंडाला पूर्णपणे कोरून बनवले आहे. कमीत कमी तीन पिढ्या या मंदिराच्या निर्मितीसाठी राबल्या आहेत. त्या काळातील लोकांना एकच इतका मोठा दगड कसा ओळखू आला असेल. त्याचे माप कसे कळले असेल कि त्यांनी बरोबर तीन मजली मंदिर उभे केले. आधी कळस मग पाया पद्धती वापरून बनवलेले हे एकमेव मंदिर म्हणजे शिल्पकलेचा आणि तत्कालीन लोकांच्या भूमीच्या गर्भाच्या अभ्यासाचा एक जिवंत नमुना आहे.

५) https://plus.google.com/101257929962594949214/posts/gTq2Jyaj8ga
बाण स्तंभ. सोरटी सोमनाथाचे कुप्रसिद्ध मंदिर आपल्या सगळ्यांनाच माहित आहे. बारा ज्योतिर्लिंगापैकी एक असणारे हे मंदिर गझनीच्या मोहमदने १७ वेळा लुटले होते. या मंदिरात एक बाणस्तंभ आहे. त्या स्तंभावर संस्कृत मध्ये असे कोरले आहे कि या स्तंभापासून अंतर्क्तिका पर्यंत सरळ रेषा मारली तर भूमी लागत नाही. या लेखासोबत त्याच्या लिंक सुद्धा दिल्या आहेत. गुगल map चा फोटो सुद्धा दिला आहे. त्या काळातील लोकांच्याकडे आज असणारी कोणतीही सामुग्री नसताना सुद्धा ते या पद्धतीची घोषणा कशी काय करू शकले असतील ? आज च्या विज्ञानाकडे याचे उत्तर आहे ?? त्यांनी नक्की कोणती यंत्रे, कोणती तंत्रे वापरली असतील ज्यामुळे त्यांना हे ज्ञान प्राप्त झाले ???

६) http://justfunfacts.com/interesting-facts-about-meenakshi-amman-temple/

मीनाक्षी टेम्पल मदुराई : सुमारे २५०० वर्ष जुने मंदिर. बांधकाम करताना ३० ते ३५ टन वजनाच्या शिळा हत्तींच्या सहाय्याने ढकलत आणून निर्मिती केलेली आहे. या मंदिरात सहस्त्रखंबी मंडप आहे. त्यात ९८५ खांब आहेत आणि त्यातील काही खांबांवर आपण नाणे वाजवले तर सा ते नि असे सप्तसूर ऐकू येतात. मी मध्यंतरी डिस्कव्हरी वर एक कार्यक्रम पाहिला होता ज्यात या मंदिराचे वर्णन आहे. त्यात त्यांना सुद्धा हाच प्रश्न पडला कि २५०० वर्षांच्या पूर्वी ३० टन वजनाचा दगड कसा हलवला असेल. त्या साठी त्यांनी एक दगड आणला सुमारे २५ टन वजनाचा कारण आजच्या वैज्ञानिक दृष्ट्या प्रगत भारतात दगड वाहण्यासाठी असणारा सगळ्यात मोठा ट्रेलर सुद्धा २५ टन वजनच वाहून नेऊ शकतो. आणि जुन्या ग्रंथात लिहिल्याप्रमाणे त्यांनी लाकडी ओंडके तासून गोल केले त्यावर तो दगड टाकून त्यांनी हत्तींचा वापर करून ढकलून पहिले आणि त्यांना तसे करता आले . ( ज्याला आपण तरफ चे तत्व किंवा लिव्हर आर्म प्रिन्सिपल म्हणतो त्याच तत्वाचा वापर करून हि अत्यंत अवजड वस्तू हत्तींनी लीलया ढकलून दाखवली )

७) https://en.wikipedia.org/wiki/Konark_Sun_Temple

कोणार्क चे सूर्य मंदिर : संपूर्णपणे लोह्कांत दगड वापरून बनवलेले मंदिर म्हणजे कोणार्क चे सूर्य मंदिर. या मंदिराचे वैशिष्ट्य म्हणजे हे लोह्कांत दगड एकमेकांचे magnetic forces balance करून घट्ट बसवले होते. त्या नंतर त्यावर शिल्पे घडवली. मंदिराचा कळस हा सुद्धा लोह्कांत दर्जाचा होता आणि तो कळस संपूर्ण मंदिराचे magnetic forces control करत असे. या मंदिराच्या आत जे राशी चक्र काढले होते ते या पद्धतीचे होते कि रोज सूर्य उगवताना ज्या राशीत असेल त्या राशीवर बरोबर सूर्याचे पहिले किरण पडणार. अर्थात रोज राशी बदलला अनुसरून किरणांची जागा बदलणार. कल्पना करा याला भूगोल आणि स्थापत्याचा काय दर्जाचा अभ्यास लागला असेल.

या मंदिराची मला माहित असणारी कथा सांगतो. हे मंदिर समुद्र किनाऱ्याच्या जवळ आहे. आणि त्या भागात समुद्र किनारा अत्यंत खडकाळ आहे. या किनाऱ्याजवळ येणारी जहाजे त्यातील लोखंड या magnetic forces ने ओढली जाऊन खडकावर आपटून फुटून जात असत.  ज्यावेळी वास्को द गामा भारतात आला त्याच्या दोन पैकी एका जहाजाचा याच पद्धतीने खडकावर आदळून अंत झाला. त्याला यात मंदिराचा काही तरी परिणाम आहे हे लक्षात आले त्याने जहाजावरून तोफा डागल्या. त्यामुळे मंदिराचा कळस निखळला. कळस निघाल्याने सगळे magnetic forces unbalance झाले आणि मंदिर जवळ जवळ उध्वस्त झाले. नंतर ब्रिटीश कालखंडात ब्रीतीशाना कल्पना होती कि आपण हे मंदिर पूर्ववत करू शकत नाही. त्यांनी मंदिराच्या गर्भगृहात चक्क कोन्क्रीट ठासून भरले.

आजच्या महान विज्ञान आणि वैज्ञानिकांना आवाहन आहे. ते कोन्क्रीट काढा आणि पुन्हा ते मंदिर पूर्ववत करून दाखवा.

८) https://en.wikipedia.org/wiki/Varāhamihira

हि माझी पोपटपंची नाही. विकिपीडियाच वराह मिहीर चे गणितातील योगदान सांगतो आहे. सदरील ऋषींच्या बद्दल अजून एक ज्ञात बाब म्हणजे ते सूक्ष्म देह धारण करून ( यावर विज्ञानाचा बिलकुल विश्वास नाही ) अंतराळात भ्रमण करत असे. आणि त्यांनी काही श्लोक लिहिले आहेत ज्यात त्यांनी तुम्ही अंतराळात प्रवास करत असला आणि तुम्हाला जिथे आहात तेथून सूर्य अथवा पृथ्वी दोन्ही सुद्धा दिसत नसेल तरीपण आपले लोकेशन ( स्थान ) कसे ओळखावे आणि प्रवास करावा यावर मार्गदर्शन केलेले आहे.

मध्यंतरी डिस्कव्हरीवर मंगलयान सफल झाल्यावर एक कार्यक्रम दाखवला गेला. त्यात नासा पहिली प्रयत्नात का अपयशी झाली याची चर्चा होती. आणि भारत का सफल झाला याचे सुद्धा विवरण होते. मंगलयान मंगल ग्रहाच्या कक्षेत स्थिर करताना एक समस्या वर सांगितल्या प्रमाणेच उद्भवली कि मंगल यान मंगल ग्रहाच्या उलट बाजूला होते. एका बाजूला सूर्य अन दुसऱ्या बाजूला पृथ्वी होती यानाला या पैकी काहीही दिसत नव्हते. या ठिकाणी वराह मिहीर ने सांगितलेली पद्धत वापरून प्रोग्राम बनवला होता आणि तो परफेक्ट होता त्या प्रमाणे मंगल यान सफलपणे मंगळावर उतरले.

९)  http://www.ancientpages.com/2014/05/15/atomic-theory-invented-2600-years-ago-acharya-kanad-genius-ahead-time/

आचार्य कणाद ज्यांनी अणु त्याच्या गर्भातील छोटे पार्टिकल यांच्यावर शास्त्रीय भाष्य केलेले आहे. आणि हा लेख वाचा. मी सांगत नाही तज्ञ अश्या पाश्चात्य विद्वानांनी सुद्धा यावर शिक्का मोर्तब केलेलं आहे.

१०) वैदिक गणित, आपले पंचांग आणि त्यावर आधारित पर्जन्य मानाचे अंदाज:
गणित हा भारतीयांनी जगाला दिलेला शोध आहे. शून्यावर आधारित गणमान पद्धती हि भारताची देण आहे. भारतातून हे ज्ञान मध्य पूर्वेला गेले अरब लोकांनी ते युरोपात नेले. त्यामुळे गणिताला युरोपियन लोक अरेबिक म्हणत आणि अरबी लोक हिंदसा म्हणत अर्थात हिंद मधून आलेली गणन पद्धत. यावर आधारित आपले पंचांग हे आज सुद्धा सगळ्यात परफेक्ट आहे. आपल्याकडे पर्जन्यमान दर्शवणारे जितके ग्रंथ आहेत ते नक्षत्रांची स्थिती आणि त्यानुसार पर्जन्य आणि येणारे पिक हा अंदाज वर्तवतात तो अंदाज आपल्या हवामान खात्याच्या अंदाजापेक्षा अधिक चांगला असतो.

११) ज्या विज्ञानाच्या यशाच्या आपण गप्पा मारत असतो त्याचा पाया उत्तम गणिती ज्ञान हा आहे आणि त्यात भारतीय खूप आधी पासून तज्ञ आहेत. आज तुम्ही गणिताचे ऑलिम्पियाड जिंकलेल्या कोणत्याही मुलाला विचारा तू काय करणार तो सांगतो मी पाय चे मूल्य अधिकाधिक चांगले मांडणार. पाय हा वर्तुळाचा व्यास मोजण्यासाठी वापरला जाणारा स्थिरांक आहे.

https://hindufocus.wordpress.com/2009/07/16/the-sanskrit-verse-for-the-value-of-pi/
http://www.sanskritimagazine.com/vedic_science/value-pi-upto-32-decimals-rig-veda/

पाय चे मूल्य ३२ अंशापर्यंत या श्लोकातून समजते. पाय चे मूल्य शुल्बसूत्रातून काढले गेले आहे. आधुनिक विज्ञानाने पाय चे मूल्य २२ अंशापर्यंत काढले आहे.

१२)  आपण गणन करण्यासाठी जी पद्धत वापरतो त्यात इंग्रजी अक्षरात
trillion च्या पुढे गणना नाही. आपल्या पद्धतीत. पद्म, महापद्म, अर्व, खर्व पर्यंत गणन करण्यासाठी शब्द आहेत.

१३) https://www.speakingtree.in/blog/from-kedarnath-to-rameswaram-7-ancient-shiva-temples-fall-in-straight-line-638811

प्राचीन भारतातील हि सात शिव मंदिरे एकाच अक्षांशाला संदर्भ घेऊन बांधली आहेत. सर्व मंदिरे एकमेकांच्या पासून कमीत कमी काही हजार किलोमीटर दूर आहेत. असे असताना त्यांना ती एका रांगेत बांधता आली याचा अर्थ त्यांचे भूगोलाचे आणि अक्षांश आणि रेखांशाचे ज्ञान किती परिपूर्ण होते याचे द्योतक आहे.

मी इथे दिलेली माहिती म्हणजे सागरातील काही थेंब आहेत. शक्यतो प्रत्येक मुद्याचे स्पष्टीकरण सुद्धा देण्याचा प्रयत्न केला आहे. आधुनिक विज्ञान म्हणजे कचरा आहे असे माझे बिलकुल मत नाही. आधुनिक विज्ञानाची दृष्टी वेगळी आहे. प्राचीन ऋषींची दृष्टी वेगळी होती. त्यांच्या दृष्टीत लोककल्याणाची तळमळ अधिक होती. त्यांची दृष्टी अधिक निसर्गपूरक होती. दुर्दैवाने सध्याचे विज्ञान हे निसर्गाला आव्हान देण्यासाठी विकसित होते आहे. भारतीय ऋषींनी विकसित केलेले विज्ञान हे निसर्ग आणि मानव यांनी शांततापूर्वक सहजीवन व्यतीत करावे असे होते.

याठिकाणी मला चीनमधील एक महान विचारवंत कान्फूशियस याचे एक वाक्य उधृत करायचे आहे. तुम्ही निसर्गाच्या नियमांना बांधील राहून काही निर्माण केले तर निसर्ग ते टिकण्यास मदत करतो. तुम्ही निसर्गाला आव्हान देऊन काही निर्माण केले तर निसर्ग ते उध्वस्त करण्याच्या उद्योगाला लागतो.
आपले आजचे विज्ञान असे संहारक होऊ लागले आहे आणि त्याचा परिणाम म्हणून आपण पर्यावरणाच्या बदलांशी झुंजतो आहोत. 

मी अध्यात्माच्या मार्गावर चालणारा एक छोटा पांथस्थ आहे. मला स्वतःला प्राचीन विज्ञान आणि अर्वाचीन विज्ञान असा लढा उभा करण्यात काहीही रस नाही.

पण इथे मला एक गोष्ट नमूद करावीशी वाटते आपल्या देशात चार प्रकारचे लोक आहेत. पहिल्या प्रकारात त्यांना भारतीय आणि त्यातल्यात्यात हिंदू म्हणून जन्माला आलो याची लाज वाटते. त्यांना आपले सगळे जुने ज्ञान म्हणजे कचरा वाटतो आणि ते पाश्चिमात्य ज्ञानाच्या प्रेमात पडलेले असतात. दुसऱ्या प्रकारातील लोक स्वार्थी असतात. त्यांना वेद आणि प्राचीन ज्ञान यातील शून्य माहिती असते परंतु काहीही असले तर ते वेदात आहे म्हणून हि मंडळी ठोकून मोकळी होतात. त्यांचे वेद आणि प्राचीन ज्ञानाच्या बद्दलचे प्रेम बेगडी आणि स्वतःची तुंबडी भरणारे आहे. तिसऱ्या प्रकारातील लोक श्रद्धाळू असतात. लोक म्हणतात म्हणजे वेदात काही तरी भारी असेल असा विचार करून ते गप्प बसतात हि पाप भीरु मंडळी असतात. आणि स्वार्थी लोक यांनाच फसवतात. चौथ्या प्रकारात माझ्या सारखे लोक असतात. जे आपली मती वापरून या प्राचीन ज्ञान सागरातील एक दोन थेंब जरी मिळवता आले तरी त्याची चव कृतज्ञपणे चाखतात...

Thursday 5 April 2018

दयान एक अभ्यास - ओशो

*प्रश्न: ध्यान किसे कहते हैं, और उसे करने की क्या विधि है?*

```निर्विचार चेतना ध्यान है। और निर्विचार के लिए विचारों के प्रति जागना ही विधि है।

विचारों का सतत प्रवाह है मन। इस प्रवाह के प्रति मूर्च्छित होना - सोये होना, अजाग्रत होना -- साधारणतः हमारी स्थिति है। इस मूर्च्छा से पैदा होता है तादात्म्य। "मैं" ही मन हूं मालूम होने लगता है।

जागें और विचारों को देखें। जैसे कोई राह चलते लोगों को किनारे खडे़ होकर देखे। बस, इस जागकर देखने से क्रांति घटित होती है। विचारों से स्वयं का तादात्म्य टूटता है। इस तादात्म्य - भंग के अंतिम छोर पर ही निर्विचार - चेतना का जन्म होता है।```

*ऐसे ही जैसे आकाश में बादल हट जावें तो आकाश दिखाई पड़ता है। विचारों से रिक्त चित्ताकाश ही स्वयं की मौलिक स्थिति है। वही समाधि है।*

*ध्यान है विधि।*
*समाधि है उपलब्धि।*

```लेकिन, ध्यान के संबंध में सोचें मत। ध्यान के संबंध में विचारना भी विचार ही है उसमें तो जायें। डूबें। ध्यान को सोचें मत -चखें।

मन का काम है सोना और सोचना, जागने में उसकी मृत्यु है। और ध्यान है जागना। इसलिए मन कहता है, "चलो -- ध्यान के संबंध में ही सोचें!" यह उसकी आत्मरक्षा का अंतिम उपाय है। इससे सावधान होना। सोचने की जगह , देखने पर बल देना।```

*विचार नहीं , दर्शन --- बस यही मूलभूत सूत्र है। दर्शन बढ़ता है, तो विचार क्षीण होते हैं। साक्षी जागता है, तो स्वप्न विलीन होता है। ध्यान आता है तो मन जाता है। मन है द्वार, संसार का। ध्यान है द्वार, मोक्ष का।*

```मन से जिसे पाया है, ध्यान में वह खो जाता है। मन से जिसे खोया है, ध्यान में वह मिल जाता है।```

*~ ओशो*
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*ध्यान बुझाये प्यास ~ बाकी सब बकवास 🌹✨*