Friday 10 September 2021

हतगड किल्ला विषयी माहिती

हतगड किल्ला, सापुतारा जवळ , नाशिक

हतगड किल्ला .....

छत्रपती शिवाजी महाराजांनी सुरत लुटीदरम्यान जिंकलेला "हतगड"  सुंदर अन् ऐतिहासिक किल्ला आहे. नाशिकहून सापुताऱ्याकडे जाणाऱ्या रस्त्यावर उजव्या हाताला आडवा पहुडलेला एक पाषाण आपल्याला आकर्षित करतो. हा पाषाण म्हणजेच "हतगड" . हतगडाचे मूळ नाव हतगरू म्हणजे हद्दीवरचा गड आणि हस्तगिरी असेही म्हटले जाते. हा गड महाराष्ट्र-गुजरात सीमेवर आहे. हतगडावरून सापुताऱ्याचा रम्य परिसर पाहण्यासारखा आहे. बागूल राजांचा कवी रूद राष्ट्रौढवंशम् महाकाव्यम या ग्रंथात बागूल राजे हस्तगिरी किल्ला ताब्यात घेतल्याचा उल्लेख मिळतो. बागलाणात बागूल राजांची कारर्किद १३०० ते १७०० अशी आहे. तर रूद्र कवीने १५९६ मध्ये राष्ट्रौढवंशम् हे महाकाव्य लिहिले. हतगडावरील शके १४६९ (सन १५४७) मध्ये कोरलेला शिलालेख बागूल राजाच्या ताब्यात हा किल्ला असल्याची साक्ष देतो. या शिलालेखात भैरवशहा या राजाच्या कामगिरीचा उल्लेख आहे. त्यापूर्वी" हतगड" निजामशाहीत होता. बागूल राजाकडून तो पुन्हा निजामशाहीत गेला. दिल्ली बादशहाच्या कागदपत्रात किल्ल्याचा उल्लेख होलगड असाही केल्याचे दिसतो. गंगाजी ऊर्फ गोगाजी मोरे-देशमुख हे छत्रपती शिवाजी महाराजांच्या लढवय्यांपैकी एक. दख्खनच्या मोहिमेसाठी शके १५८५ (सन १६६३) मध्ये सुरगणा परिसरात पाठविले होते. यावेळी हतगड किल्ला आदिलशाहाचा सुभेदार शुराबखान हा किल्लेदार होता. गोगाजीराव मोरे यांनी मोठ्या पराक्रमाने हा किल्ला शके १५८६ (सन १६६३) मध्ये ताब्यात घेतला. म्हणजेच छत्रपती शिवाजी महाराजांनी सुरतेच्या लुटीपूर्वी हा किल्ला ताब्यात घेतला होता. गंगाजी ऊर्फ गोगाजी मोरेंचा पराक्रम लक्षात घेऊन छत्रपतींनी त्यांना हतगड परिसरातील बारा गावांची देशमुखी दिली होती. दिल्लीच्या अकबर बादशहाच्या सांगण्यावरून सय्यद अब्दुल्ल यांचा मुलगा हसन अली याने किल्ला ताब्यात घेण्यासाठी स्वारी केली. त्यावेळी किल्लेदार गंगाजी मोरे या किल्लेदाराने निकराचा लढा दिला. मात्र मोरेंचा पराजय झाला. तेव्हा किल्ला मुगलांच्या ताब्यात गेला. हसन अलीने किल्ला जिंकला हे सांगण्यासाठी दिल्ली बादशहाला ९ ऑगस्ट १६८८ रोजी हतगडची सोन्याची प्रतिकृत चिन्ह सादर केली होती. यावेळी बादशहाने हसनअलीला ‘खान’ ही पदवी बहाल केली. हतगडच्या पायथ्याशी गंगाजी मोरे या किल्लेदाराची समाधीही आहे. हतगडचे चढन अगदी सोपे असून, वरपर्यंत गाडी जाते. हतगडचे प्रवेशद्वार, शिलालेख व गडावरील इमारतींचे अवशेष तसेच धान्य कोठारे व पाण्याचे टाके पाहण्यासारखे आहेत..

गणेश उत्सव और गणपतिजी की विशेषताएं

गणेश चतुर्थी उत्सव
महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक द्वारा भारत की स्वतंत्रता के लिए शुरू किए गए जनजागरण अभियान का एक हिस्सा गणेश उत्सव रहा है । आइये जानते है कुछ रोचक जानकारियाँ ।
*गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था।* इसलिए हर साल भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश उत्सव मनाया जाता है। गणेश को वेदों में ब्रह्मा, विष्णु, एवं शिव के समान आदि देव के रूप में वर्णित किया गया है। इनकी पूजा त्रिदेव भी करते हैं।भगवान श्री गणेश सभी देवों में प्रथम पूज्य हैं। शिव के गणों के अध्यक्ष होने के कारण इन्हें गणेश और गणाध्यक्ष भी कहा जाता है। भगवान श्री गणेश मंगलमूर्ति भी कहे जाते हैं क्योंकि इनके सभी अंग जीवन को सही दिशा देने की सिख देते हैं।

*बड़ा मस्तक*
गणेश जी का मस्तक काफी बड़ा है। ज्योतिष विज्ञान बड़े मस्तिष्क को काफी नसीबदार मानता है । अंग विज्ञान के अनुसार बड़े सिर वाले व्यक्ति नेतृत्व करने में योग्य होते हैं। इनकी बुद्घि कुशाग्र होती है। गणेश जी का बड़ा सिर यह भी ज्ञान देता है कि अपनी सोच को बड़ा बनाए रखना चाहिए।
*छोटी आंखें*
गणपति की आंखें छोटी हैं। छोटी आंखों वाले व्यक्ति चिंतनशील और गंभीर प्रकृति के होते हैं, यह समजाती है कि हर चीज को सूक्ष्मता से देख-परख कर ही कोई निर्णय लेना चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी धोखा नहीं खाता।
*सूप जैसे लंबे कान*
गणेश जी के कान सूप जैसे बड़े हैं इसलिए इन्हें गजकर्ण एवं सूपकर्ण भी कहा जाता है। अंग विज्ञान के अनुसार लंबे कान वाले व्यक्ति भाग्यशाली और दीर्घायु होते हैं। गणेश जी के लंबे कानों का एक रहस्य यह भी है कि वह सबकी सुनते हैं फिर अपनी बुद्धि और विवेक से निर्णय लेते हैं। बड़े कान हमेशा चौकन्ना रहने के भी संकेत देते हैं। गणेश जी के सूप जैसे कान से यह शिक्षा मिलती है कि जैसे सूप बुरी चीजों को छांटकर अलग कर देता है उसी तरह जो भी बुरी बातें आपके कान तक पहुंचती हैं उसे बाहर ही छोड़ दें। बुरी बातों को अपने अंदर न आने दें।
*गणपति की सूंड*
गणेशजी की सूंड हमेशा हिलती डुलती रहती है जो उनके हर पल सक्रिय रहने का संकेत है। यह हमें ज्ञान देती है कि जीवन में सदैव सक्रिय रहना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करता है उसे कभी दुखः और गरीबी का सामना नहीं करना पड़ता है।
शास्त्रों में गणेश जी की सूंड की दिशा का भी अलग-अलग महत्व बताया गया है। मान्यता है कि जो व्यक्ति सुख-समृद्वि चाहते हो उन्हें दायीं ओर सूंड वाले गणेश की पूजा करनी चाहिए। शत्रु को परास्त करने एवं ऐश्वर्य पाने के लिए बायीं ओर मुड़ी सूंड वाले गणेश की पूजा लाभप्रद होती है।
*लंबोदर* *बड़ा उदर*
गणेश जी का पेट बहुत बड़ा है। इसी कारण इन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर होने का कारण यह है कि वे हर अच्छी और बुरी बात को पचा जाते हैं और किसी भी बात का निर्णय सूझबूझ के साथ लेते हैं। अंग विज्ञान के अनुसार बड़ा उदर खुशहाली का प्रतीक होता है। गणेश जी का बड़ा पेट हमें यह ज्ञान देता है कि भोजन के साथ ही साथ बातों को भी पचना सीखें। जो व्यक्ति ऐसा कर लेता है वह हमेशा ही खुशहाल रहता है।
*एकदंत*
बाल्यकाल में भगवान गणेश का परशुराम जी से युद्घ हुआ था। इस युद्घ में परशुराम ने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत काट दिया। इस समय से ही गणेश जी एकदंत कहलाने लगे। गणेश जी ने अपने टूटे हुए दांत को लेखनी बना लिया और इससे पूरा महाभारत ग्रंथ लिख डाला। यह गणेश जी की बुद्घिमत्ता का परिचय है। गणेश जी अपने टूटे हुए दांत से यह सीख देते हैं कि चीजों का सदुपयोग किस प्रकार से किया जाना चाहिए। 
श्रीगणेशजी आप सब पर सदैव कृपा बरसातें रहें यही शुभकामनाएं ।

Hitesh Karia
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